प्यारा-दुश्मन
कोई चलता पदचिह्नों पर, कोई पदचिह्न बनाता है ...
Tuesday, September 16, 2025
Saturday, August 30, 2025
वाकई पर्यटकों को खींच सकती है कोटा की अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा
मां चर्मण्यवती के किनारे स्थित कोटा शहर में पिछले 76 सालों से निकल रही अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा के वर्तमान आयोजन समिति के कुछ सदस्यों ने पिछले दिनों जिला कलक्टर को ज्ञापन सौंप कर बहुत महत्वपूर्ण सुझाव दिया था। मुझे नहीं पता कि जिला कलक्टर ने उसे कितनी गंभीरता से लिया और क्या कार्रवाई की, लेकिन सुझाव मेरे मत में उत्तम था और कोटा को धार्मिक पर्यटन के नक्शे पर उभारने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
आयोजक कार्यकर्ताओं ने जिला कलक्टर को पिछले दिनों अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा की भव्यता के बारे में बताते हुए सुझाव दिया था कि इस विशाल शोभायात्रा का लाइव प्रसारण पर्यटन विभाग के पोर्टल पर किया जाए और इसे पर्यटकों को आकर्षित करने की दृष्टि से पर्यटन विभाग के पोर्टल पर अपलोड भी किया जाए। बेशक, भले ही एक साधारण ज्ञापन के माध्यम से यह सुझाव मिला हो लेकिन कोटा को पर्यटन क्षेत्र में नई पहचान दिलाने में यह महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।
इतने व्यापक स्तर पर और अद्भुत भव्यता, सुर्ख केसरिया शौर्य के साथ आयोजित होने वाली शोभायात्रा का शहर से बाहर देश-दुनिया में पर्यटन पोर्टल के जरिए क्यों ना प्रचार प्रसार होना चाहिए? देश में आने वाला हर तीसरा पर्यटक राजस्थान और राजस्थान में आने वाले पर्यटकों का बड़ा वर्ग हाड़ौती में आता है। सावन भादो के इन महीनो में रामदेवरा में बाबा रामदेव का मेला, बूंदी और जयपुर की तीज की सवारी जैसे धार्मिक आयोजन होते हैं और बड़ी संख्या में पर्यटक इन्हें देखने पहुंचते भी हैं। ऐसे में कोटा की अनन्त चतुर्दशी शोभायात्रा को पर्यटन के नक्शे पर उभार दिया जाए और उसे दिशा में गंभीरता से प्रयास किए जाएं तो हाडोती की तरफ देसी -विदेशी पर्यटकों को खींचा जा सकता है। और, यहां पर्यटक आने पर रिवर फ्रंट, ऑक्सिजोन, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क समेत अन्य जो पर्यटन की दृष्टि से निर्माण हुए हैं उनका भी लाभ राजस्व की दृष्टि से शहर को मिल सकता है।
जहां तक सुझाव पर अमलीजामा पहनाने की बात है और पर्यटकों की व्यवस्था की बात है तो शोभायात्रा के दौरान तीन से चार जगह वर्गीकृत रूप से पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था की जा सकती है। इनमें शुरुआत स्थल सूरजपोल, कैथूनी पोल के अलावा मुख्य रूप से रामपुरा में महात्मा गांधी स्कूल और महारानी स्कूल के आसपास इनकी व्यवस्था की जा सकती है। पीछे ही बने रिवर फ्रंट से निकासी आदि का प्रबंध भी हो सकता है। रामपुरा इस शोभायात्रा का हृदय स्थल होता है और यहां पहुंचने पर शोभायात्रा अपने यौवन पर होती है, इसलिए सर्वाधिक पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था रामपुरा में किया जाना उचित होगा। विसर्जन देखने के इच्छुक पर्यटकों के लिए किशोर सागर तालाब स्थित बारहदरी में अलग से दीर्घा बना कर सीमित संख्या में पास देकर की जा सकती है।
पर्यटकों को इस शोभायात्रा की ओर खींचने का यह प्रयास नि:संदेह है कोटा के पर्यटन के पंखों को नई ऊंचाई दे सकता हैं। बहरहाल, सारा दारोमदार जिला प्रशासन पर है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि नवाचार के लिए पहचाने जाने वाले वर्तमान जिला कलक्टर इस दिशा में कुछ करेंगे और कोटा के पर्यटन फलक पर नई इबारत लिखने की चेष्टा होगी।
पर्यटकों को इस शोभायात्रा की ओर खींचने का यह प्रयास नि:संदेह है कोटा के पर्यटन के पंखों को नई ऊंचाई दे सकता हैं। बहरहाल, सारा दारोमदार जिला प्रशासन पर है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि नवाचार के लिए पहचाने जाने वाले वर्तमान जिला कलक्टर इस दिशा में कुछ करेंगे और कोटा के पर्यटन फलक पर नई इबारत लिखने की चेष्टा होगी।
Monday, December 16, 2024
न्याय की चौखट!
राजस्व न्यायालयों में लंबित मामलों के हालात को दर्पण दिखाती एक लघुकथा! एक और "सीता माता " के संघर्ष की कथा!
(dhitendra.sharma@gmail.com)
Friday, December 13, 2024
चुनावी राजनीति में विकास निचले पायदान पर क्यों
हमारे लोकतांत्रिक चरित्र की यही असल तस्वीर है। हमारा सामाजिक चरित्र मोटे तौर पर भावना-प्रधान है और समाज यह प्राथमिकता से चाहता है कि काम कोई करे न करे, हमारा प्रतिनिधि हमारे व्यक्तिगत-सामूहिक सुख-दुख में साथ खड़ा रहे। उसकी बात सुने। ऐसे में हमारे लोकतांत्रिक चरित्र में लोक-जुड़ाव सर्वोच्च प्राथमिकता पर आ गया और विकास बाद के पायदानों पर। अगर लोगों से जुड़ाव शासनिक जिम्मेदारियों के चलते कम हो गया तो जनआक्रोश राजनेता को जमीन पर उतारने को आतुर हो जाता है, सत्ता से हटा देता है।
Tuesday, December 10, 2024
भारतीय राजनीति अब नई दिशा में, बॉसशिप के लिए कोई स्थान नहीं
-धीतेन्द्र कुमार शर्मा-उच्च पदों के रसूख और प्रोटोकॉल्स के भौंडे प्रदर्शन से, चाहे वह राजनीतिक हो या फिर कार्यपालक प्रशासनिक मशीनरी, हमारे मनोविज्ञान में अधिकारिता व अधीनस्थता (बॉसशिप और सबोर्डिनेटशिप) का भाव कूट-कूट कर भर गया है। संभवतया राजशाही युग में ऐसा नहीं था क्योंकि राजा के प्रति कृतज्ञता थी और दांडिक भय था। शासन के ब्रिटिश कार्यकाल में ऑफिस कल्चर विकसित हुई और अंग्रेज अधिकरियों को अधिक रुतबे से नवाजा गया। वहीं से यह कुरीति हमें विरासत में मिली। जबकि लोकतांत्रिक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में बॉसशिप, सबोर्डिनेटशिप को निस्संदेह कोई स्थान नहीं होना चाहिए। सभी जनप्रतिनिधि हैं, कोई स्थाई कैडर अधिकारी नहीं है, और निििश्चत कार्यकाल के लिए जनता ने शासनिक व्यवस्था संचालन के लिए चुनकर भेजा है।
Tuesday, January 3, 2023
खुल्ला बोल: ब्राह्मण की पहचान फरसा या वेद!
संदर्भ- सामाजिक आयोजनों का संदेश क्या?
-धीतेन्द्र कुमार शर्मा-
इस आलेख पर आगे बढऩे से पहले मैं विप्र समुदाय से क्षमा प्रार्थना करते हुए (क्योंकि संभव है ज्यादातर मेरे इस विचार से असहमति रखते हों) स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि अपने विचार प्रकटीकरण के दौरान मेरी मंशा ना तो व्यापक सामुदायिक विश्वास को चोट पहुंचाने की है और ना ही समाज का बौद्धिक-रणनीतिक ठेकेदार होने का दावा प्रस्तुत करने की! यह सिर्फ समाचार-पत्रों में 2 जनवरी 2023 प्रकाशित एक समाचार पढऩे और उस दौरान मन में उठे विचारों का प्रकटीकरण मात्र है। इस विचार से कि शायद यह चिंतनधारा व्यापक बहस का हिस्सा बन कोई मंथन सत्व प्रदान कर दे।
समाचार यह कि, कोटा में ब्राह्मणों के कल्याण को समर्पित स्वनामधन्य एक सामाजिक संगठन के स्थापना दिवस आयोजन में एक जनवरी को 701 विप्र बंधुओं ने फरसा यानी शस्त्र पूजन किया। गौरव के साथ विप्र प्राधान्य समाचार-पत्रों में इसे बड़ा स्थान भी मिला। आयोजन में सर्वसमाज कल्याणकारी कार्य रक्तदान भी हुआ लेकिन हैडलाइन शस्त्र-शक्ति संदेशवाही इवेंट फरसा पूजन ही बना। कोटा दक्षिण के विप्र विधायक संदीप शर्मा ने तो फरसा पूजन को ब्राह्मणों की परंपरा करार दिया। आयोजन में राजस्थान विप्र कल्याण बोर्ड अध्यक्ष महेश शर्मा भी मौजूद थे। बेशक सामाजिक आयोजनों से बंधुता में बढ़ोतरी है। एकता का भाव जगता है, मेल मिलाप बढ़ता है लेकिन इनकी सर्वाधिक सार्थकता सामाजिक शिक्षा और संदेश में निहित है जिससे समाज का व्यापक स्तर पर भला हो।
हम अपनी थाती पर नजरें दौड़ाएं या प्राचीन भारतीय समाज व्यवस्था को देखें तो ब्राह्मण की भूमिका समाज व राजव्यवस्था का मार्गदर्शन करने की ही रही है। शस्त्र क्षत्रिय अथवा मार्शल कौम की पहचान रही है और वेद-उपनिषद-ब्राह्मण आदि शास्त्र ब्राह्मणों की। ब्राह्मण को भारतीय समाज शिक्षक की भूमिका में देखता आया है, गुरुदेव -गुरुमहाराज की पदवी देता आया है। शस्त्र पूजक से भी उच्च स्थान इस शास्त्र पूजक विप्र वर्ग का रहा है। निसंदेह अत्याचार की अनुभूति होने पर विष्णु भगवान परशुराम अवतारी बने और फरसे को प्रतीक बनाया। लेकिन यह सिर्फ एक कालखंड मात्र रहा। विराट और ब्रह्माण्ड तुल्य महिमा में यह अति संक्षिप्त है, और वो भी तत्कालीन हालात के वशीभूत होकर ना कि सर्वकालिक। ब्राह्मण की सर्वकालिक पहचान तो वेद शास्त्र ही हैं। सोचिये ना! महर्षि वेद व्यास, विश्वामित्र, गौतम ऋषि....! क्या ये हमारे गौरव नहीं!
तल्खी और सामुदायिक टकराव के दौर में तो ब्राह्मण समुदाय का दायित्व और बढ़ जाता है। हम समाज के बौद्धिक-नेतृत्वकर्ता, मार्गदर्शक रहे हैं। क्रोध और तल्ख, आक्रामक शस्त्र-शक्ति लेपित छवि हमारा और नए बच्चों आधार क्यों बनें? क्यों न हम समाज को नई दिशा देने वाले, गुरु महाराज की पदवी की ओर बढऩे को अपनी नई पीढ़ी को प्रेरित करें। और, खास बात जिसने यह सब सोचने को मजबूर किया वो यह कि जहां यह आयोजन हुआ वह चंबल तट पर स्थित पुनीत गोदावरी धाम तो वेद शिक्षा की भूमि है। वेद विद्यालय का संचालन वहां होता है। क्या ही सुन्दर दृश्य होता जब बटुक वेद पूजन करते। शास्त्रोक्त लहरें दूर तक विप्र समाज का संदेश पहुंचाती!
जरा सोचिये! फरसा पूजन में विप्र बच्चों और बंधुओं का अधिक कल्याण है या शास्त्र पूजन में! चतुर्वेद आदि शास्त्र से ब्राह्मण समाज और उसकी नई पीढ़ी का अधिक कल्याण है या फरसा से! मेरी नजर में तो उत्तर वेद शिक्षा और पूजन हैं, आपका दृष्टिकोण समाज के कर्ताधर्ता बने पदाधिकरियों तक
जरूर पहुंचाइये!
Monday, February 24, 2020
#Journalism: डीजे संगीत और मीडिया की आजादी
-धीतेन्द्र कुमार शर्मा -
गुजरी शनिवार रात राजस्थान के एक प्रतिष्ठित मीडिया समूह के स्वामित्व वाले जयपुर स्थित परिसर में #राजस्थानपुलिस ने 10 बजे बाद डीजे संगीत बजने की बात पर कार्रवाई कर दी। सिविल लाइंस स्थित इस परिसर में बकौल मीडिया समूह(जैसा उन्होंने बहादुरी से खुद के समाचार पत्र में प्रकाशित भी किया) बैंक मालिक के अतिथि व परिजन जन्मदिन पार्टी मना रहे थे। पुलिस पर कमरों तक अवांछित दखल और अभद्रता का आरोप है, साथ ही #मीडिया_की_आजादी पर हमला भी बताया गया। खबर के समर्थन में लिखे गए तर्कों में यह भी शुमार किया गया कि क्षेत्र में अन्य मैरिज गार्डन भी हैं जिनमें देर रात तक डीजे बजता है लेकिन कार्रवाई नहीं होती। आरोप लगाया गया कि मीडिया समूह की खबरों पर प्रतिक्रिया स्वरूप राज्य सरकार की शह पर यह कार्रवाई की गई।
इस प्रतिष्ठित मीडिया समूह के कानून और सिद्धांत से जुड़े तीन किस्से मुझसे भी प्रत्यक्ष जड़े हैं। वर्ष 2007-08 की बात रही होगी। मैं इसके भरतपुर ब्यूरो प्रमुख का दायित्व निभा रहा था। इसी दौरान वहां ट्रेड फेयर लगा। मेला चल रहा था कि दो-तीन दिन बाद बिजली विजिलेंस से जुड़े अधिकारी पहुंच गए। वहां ठेकेदार बिजली चोरी करते पाया गया। तत्समय समूह की प्रतिष्ठा धवल और छवि अकाट्य थी। विद्युत जेईएन का मेरे पास तुरंत फोन आया। मैंने उच्च स्तर पर अवगत कराया। वहां से बिना समय गंवाए निर्देश मिले कि चालान कटवाया जाए, साथ ही ठेकेदार को भी हिदायत मिली कि हमारे साथ एसोएिशन में कानून की पालना तो करनी ही होगी।
दूसरा उदाहरण राजस्थान के ही पाली शहर का है। तत्समय पत्रकारिता के प्रतिमानों और सिद्धांतों के कठोर संरक्षण के चलते मुझे भरतपुर से 2010 में पाली स्थानीय संपादक बना दिया गया। वहां फिर ट्रेड फेयर लगा। एक दिन अचानक सिविल पोषाक में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक मेले में पहुंच गए। झूले वाले से लाइसेंस/अनुमति की पड़ताल भी कर ली। लाइसेंस अनुमति न होने की बात सामने आने पर उन्होंने इसे बंद करा दिया। साथ ही मुझे संदेश भिजवाया और विनम्रता से अगले दिन प्रक्रिया पूरी कर झूला चलवाने को कहा। मैंने जयपुर उच्चधिकरियों को अवगत कराया। उन्होंने स्पष्टत: कानून का पालन करने की हिदायत मेला ठेकेदार को दिलवा दी। लाइसेंस प्रक्रिया में प्रशासन का सहयोग भी मिला।
और तीसरा रोचक किस्सा ट्रेनी काल का वर्ष 1999 का है। हमारा एक बैच मैट अजमेरी गेट पर रोड रैलिंग अवैध तरीके से पार करता हमारे तत्कालीन संपादकीय अधिकारी ने देख लिया। उन्होंने समूह की प्रतिष्ठा पर ही उस दिन की पूरी क्लास ली। साथ ही उस प्रशिक्षु को निकालने की तल्ख चेतावनी भी दे दी। संदेश स्ष्ट था कि कानून के उल्लंघन की अंगुली हमारी ओर नहीं उठनी चाहिए। यह साख का सवाल है, यही हमारी पूंजी है।
बस गुजरे वर्षों में मीडिया जगत की गंगा से इतना ही पानी उतरा है। तब कानून सर्वोच्च था, अब अन्य किसी के उल्लंघन की आड़ स्वयं के भी उल्लंघन के लिए तर्क का आधार मानी जा रही। यही नहीं, तब कोई समाचार नहीं छपा, सब कुछ कुशलमंगल रहा। प्रशासन में प्रतिष्ठा और बढ़ी।
कानून से ऊपर आजादी क्यों?
बात मीडिया की आजादी की है। तो कानून से ऊपर किसे आजादी मिलनी चाहिए और क्यों? मीडिया तो समाज का पथ प्रदर्शक है, स्वयं आचरण पेश कर अन्य पर कार्रवाई के लिए प्रशासन को मजबूर करे। रात 10 बजे बाद डीजे बंद होना है तो बंद होना ही चाहिए। मेरे प्रभावी सेवाकाल के दौरान परिवार के तीन विवाह समारोहों में हमने 10 बजे बाद डीजे बंद करा दिया।एक और बात, मीडिया समूह के व्यापारिक दृष्टिकोण में डीजे संगीत की आवश्यकता कहां है, इस पर एडिटर्स गिल्ड, पत्रकारिता से जुड़े संगठनों, प्रेस काउंसिल और सरकार को भी मंथन करना चाहिए। कुछ वर्ष पहले एक इलेक्ट्रोनिक चैनल पर भी वित्तीय अनियमितता पर कार्रवाई को मीडिया पर हमला बताया गया। हालांकि, जनता ने उसे किस पायदान पर खड़ा कर दिया, और आज सबसे तेज कौन है, यह सबके सामने है। कुछ माह पहले एक और चैनल के मालिक पर कार्रवाई हुई, वहां भी वित्तीय अनियमितता का मसला था।
चौतरफा शुचिता की जरूरत
असल में, अब वक्त है उस आंदोलन को गति देने की जिसका आगाज अन्ना हजारे ने आजादी की दूसरी लड़ाई के संबोधन के साथ यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में किया था। जिसकी उपज अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी है। अब चौतरफा शुचिता की जरूरत है। किसी को भी दग्ध धवल मानने की आवश्यकता नहीं। स्वच्छता की अग्नि परीक्षा में उत्तीर्ण होना सबके लिए अनिवार्य हो। भले ही मीडिया ही क्यों न हो। संविधान और कानून हम सबने स्वीकार किया है, #'हम_भारत_के_लोग' में मीडिया भी शामिल है। कुछ आचार संहिता तो अवश्य बने। मीडिया से इतर अन्य व्यापार-व्यवसाय में मीडिया का इस्तेमाल करने की लक्ष्मण रेखा भी तय हो ही।हां, पुलिस के द्वारा अभद्रता करने वाले आरोपों की जांच जरूर निष्पक्ष होनी ही चाहिए, पुलिस को यदि कोई डीजे के अतिरिक्त भी अन्य इनपुट था जिसके आधार पर तलाशी ली गई तो इसका खुलासा जनता के बीच सार्वजनिक करना चाहिए अन्यथा बेजा दखलंदाजी पर महकमा बिना शर्त माफी मांगे। फिर वही बात दोहरानी होगी, कानून सबके लिए समान है, पुलिस के लिए भी और मीडिया के लिए भी।
जय हिन्द।
#DhitendraSharma
dhitendra.sharma@gmail.com
Youtube channel- sujlam suflam
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