Tuesday, September 23, 2025

आस्था और व्यवस्था में संतुलन जरूरी

यहां पर्वों के उत्साहपूर्ण आयोजनों को संकुचित करने अथवा बांधने का सुझाव देने की मंशा कतई नहीं है। ना ही आम रास्तों के अवरुद्ध होने से जूझती जिन्दगी को सरल बनाने के लिए उत्सवों के महत्व को नकारने का दुस्साहस है। लेकिन, संतुलन की बात तो अवश्य करनी होगी। आस्था और व्यवस्था का संतुलन! यह संतुलन बनाना अब वक्त की मांग है! कुशल और प्रगतिशील शासन की कटिबद्धता मतांध श्रद्धा के आगे नतमस्तक होकर आमजन को उसके हाल पर छोडऩा नहीं, आस्था और व्यवस्था दोनों को कानून के दो पलड़ों में साधकर लोककल्याण करना है!

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-धीतेन्द्र कुमार शर्मा-

सनातन संस्कृति की विरासत को सहेजे और गंगा-जामुनी परंपराओं का वाहक होने के  चलते हिमालय की गोद में बसा पुण्यधरा हमारा भारतवर्ष  कश्मीर  से कन्याकुमारी तक और द्वारका से जगन्नाथ पुरी और  सुदूर पूर्वोत्तर अरुणाचल की वादियों तक शताब्दियों से धार्मिक-आस्था का बड़ा केन्द्र है। हर धार्मिक उत्सव को यह पवित्रता और अप्रतिम उल्लास से आलिंगन करता दिखता है। हाल ही गणपति उत्सव की धूम रही। हर गांव-शहर, महानगर क्षेत्र में सैकड़ों-हजारों पांडाल में गणपति बप्पा को विराजित किए श्रद्धालु भक्ति से सराबोर रहे। पांडालों के अलावा गली-मोहल्लों में बप्पा की प्रतिष्ठा हुई है सो अलग। हर कोई बुद्धि-प्रदाता की भक्ति में डूबा। नित्य-प्रति संकीर्तन हुए। जगह-जगह मेले लगे। यह आस्थाजन्य एक पहलू रहा है। 

लेकिन, दूसरा पहलू भी कम महत्वपूर्ण नहीं था। हर चंद कदम दूरी पर पांडाल आम रास्तों को अवरुद्ध किए रहे। कई मोहल्लों में रास्ते रोक कर गणपति विराजित किए गए। ज्यादातर स्थानों पर चौराहों का उपयोग हुआ और नित्य-प्रति होता रहता है। रोज शाम को जाम जैसे हालात बन जाते हैं। इनमें कई मुख्य मार्ग तक शामिल हैं। गणपति उत्सव कोई एक दिन का नहीं। दस दिन बाद बप्पा की विदाई हुई। ऐसे में रोजमर्रा की जिन्दगी यातायात अवरोध से जूझती रही। 


और यहां, बात सिर्फ गणपति उत्सव की नहीं है। अब त्योहारी सत्र चल पड़ा है। आगामी तीन माह तक त्योहारों की धूम रहेगी। अनन्त चुतुर्दशी पर बप्पा की विदाई के बाद शक्ति-आराधना पर्व नवरात्र चल रहे हैं। प्रतिवर्ष  की भांति पुनः देवी मां के पांडाल सजे हैं। पूरे नौ दिन देवी आराधक जागरणों से सडक़ें सराबोर रहेंगी। लगभग इन्हीं सभी स्थानों पर देवी पांडाल सजे है, अपितु और अधिक संख्या में! फिर इनके बाद दशहरा मेला आ रहा है। कई स्थानों पर दशहरा मेला भी पखवाड़े भर का लगने लगा है। फिर, दीपावली, देव उठनी एकादशी, कार्तिक पूर्णिमा मेले आदि- आदि! इस सबके अलावा विभिन्न सामुदायिक धार्मिक-पर्वों पर सडक़ों पर सजने वाला कथित अस्थाई लेकिन लगभग स्थाई हो चुका बाजार गति-शक्ति में बाधक बनता है। क्या इस दिशा में प्रशासन और राष्ट्र-राज्य सत्ता में बैठे जिम्मेदार लोगों को नहीं सोचना चाहिए। 







यहां इन पर्वों के उत्साहपूर्ण आयोजनों को संकुचित करने अथवा सीमाओं में बांधने का सुझाव देने की मंशा कतई नहीं है। ना ही आम रास्तों के अवरुद्ध होने से जूझती जिन्दगी को सरल बनाने के लिए उत्सवों के महत्व को नकारने का दुस्साहस है। लेकिन, संतुलन की बात तो अवश्य करनी होगी। आस्था और व्यवस्था का संतुलन! संविधान स्वीकृत सर्व नगरिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता का संतुलन ! 

मुद्दे की बात यह कि जब प्रतिवर्ष तय कैलेण्डर की भांति से सब आयोजन होने ही हैं तो इन्हें आमजन जीवन की गति में बाधा पहुंचाए बिना इसी उत्साह से सम्पन्न कराने की कोशिशें क्यों नहीं होती! खासकर तब, जबकि पिछले एक दशक में राजनीति में भाग्य आजमाने के आकांक्षी युवाओं के लिए ऐसे अयोजन और पांडाल "प्रथम पाठशाला" के रूप में लगभग स्थापित हो चुके हैं। और, यही लालसा ऐसे आयोजनों- पांडालों की संख्या में उत्तरोत्तर गुणात्मक वृद्धि ला रही है!

कहना ही होगा कि, यह संतुलन बनाना अब वक्त की मांग है। कुशल और प्रगतिशील शासन की कटिबद्धता मतांध श्रद्धा के आगे नतमस्तक होकर या आमजन को उसके हाल पर छोडऩा नहीं, आस्था और व्यवस्था दोनों को कानून के दो पलड़ों में साधकर लोककल्याण करना है।

(स्वतंत्र लेखक, राजनीतिक विश्लेषक और सामाजिक चिंतक।)

dhitendra.sharma@gmail.com

Saturday, August 30, 2025

वाकई पर्यटकों को खींच सकती है कोटा की अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा



-धीतेन्द्र कुमार शर्मा -

मां चर्मण्यवती के किनारे स्थित कोटा शहर में पिछले 76 सालों से निकल रही अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा के वर्तमान आयोजन समिति के कुछ सदस्यों ने पिछले दिनों जिला कलक्टर को ज्ञापन सौंप कर बहुत महत्वपूर्ण सुझाव दिया था। मुझे नहीं पता कि जिला कलक्टर ने उसे कितनी गंभीरता से लिया और क्या कार्रवाई की, लेकिन सुझाव मेरे मत में उत्तम था और कोटा को धार्मिक पर्यटन के नक्शे पर उभारने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

आयोजक कार्यकर्ताओं ने जिला कलक्टर को पिछले दिनों अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा की भव्यता के बारे में बताते हुए सुझाव दिया था कि इस विशाल शोभायात्रा का लाइव प्रसारण पर्यटन विभाग के पोर्टल पर किया जाए और इसे पर्यटकों को आकर्षित करने की दृष्टि से पर्यटन विभाग के पोर्टल पर अपलोड भी किया जाए। बेशक, भले ही एक साधारण ज्ञापन के माध्यम से यह सुझाव मिला हो लेकिन कोटा को पर्यटन क्षेत्र में नई पहचान दिलाने में यह महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।

कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।

शोभायात्रा की भव्यता की गवाही में यह तथ्य भी खड़ा है कि 2 लाख से अधिक लोग इसके चश्मदीद बनते हैं, इसमें शामिल होते हैं। और, सारी व्यवस्थाओं को चाक-चौबंद रखने के लिए 15 दिन से अधिक समय तक जिला प्रशासन तैयारी करता है। साढ़े 3 हजार से ज्यादा सुरक्षाकर्मी शोभायात्रा की व्यवस्था में तैनात रहते है। विश्वास कीजिए, 15 से 18 घंटे तक देश की कोचिंग राजधानी की सड़कों पर गणपति बप्पा के विसर्जन की शोभायात्रा की धूम होती है, मेला सा लगा रहता है। दोपहर 12 बजे शुरू होने और तकरीबन पांच किलोमीटर के मार्ग से गुजरने के बाद शोभायात्रा में रात 12 बजते-बजते पहली गणपति प्रतिमा का विसर्जन हो पाता है। और, विसर्जन का यह सिलसिला तड़के तक चलता रहता है।

इतने व्यापक स्तर पर और अद्भुत भव्यता, सुर्ख केसरिया शौर्य के साथ आयोजित होने वाली शोभायात्रा का शहर से बाहर देश-दुनिया में पर्यटन पोर्टल के जरिए क्यों ना प्रचार प्रसार होना चाहिए? देश में आने वाला हर तीसरा पर्यटक राजस्थान और राजस्थान में आने वाले पर्यटकों का बड़ा वर्ग हाड़ौती में आता है। सावन भादो के इन महीनो में रामदेवरा में बाबा रामदेव का मेला, बूंदी और जयपुर की तीज की सवारी जैसे धार्मिक आयोजन होते हैं और बड़ी संख्या में पर्यटक इन्हें देखने पहुंचते भी हैं। ऐसे में कोटा की अनन्त चतुर्दशी शोभायात्रा को पर्यटन के नक्शे पर उभार दिया जाए और उसे दिशा में गंभीरता से प्रयास किए जाएं तो हाडोती की तरफ देसी -विदेशी पर्यटकों को खींचा जा सकता है। और, यहां पर्यटक आने पर रिवर फ्रंट, ऑक्सिजोन, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क समेत अन्य जो पर्यटन की दृष्टि से निर्माण हुए हैं उनका भी लाभ राजस्व की दृष्टि से शहर को मिल सकता है।


जहां तक सुझाव पर अमलीजामा पहनाने की बात है और पर्यटकों की व्यवस्था की बात है तो शोभायात्रा के दौरान तीन से चार जगह वर्गीकृत रूप से पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था की जा सकती है। इनमें शुरुआत स्थल सूरजपोल, कैथूनी पोल के अलावा मुख्य रूप से रामपुरा में महात्मा गांधी स्कूल और महारानी स्कूल के आसपास इनकी व्यवस्था की जा सकती है। पीछे ही बने रिवर फ्रंट से निकासी आदि का प्रबंध भी हो सकता है। रामपुरा इस शोभायात्रा का हृदय स्थल होता है और यहां पहुंचने पर शोभायात्रा अपने यौवन पर होती है, इसलिए सर्वाधिक पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था रामपुरा में किया जाना उचित होगा। विसर्जन देखने के इच्छुक पर्यटकों के लिए किशोर सागर तालाब स्थित बारहदरी में अलग से दीर्घा बना कर सीमित संख्या में पास देकर की जा सकती है।

पर्यटकों को इस शोभायात्रा की ओर खींचने का यह प्रयास नि:संदेह है कोटा के पर्यटन के पंखों को नई ऊंचाई दे सकता हैं। बहरहाल, सारा दारोमदार जिला प्रशासन पर है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि नवाचार के लिए पहचाने जाने वाले वर्तमान जिला कलक्टर इस दिशा में कुछ करेंगे और कोटा के पर्यटन फलक पर नई इबारत लिखने की चेष्टा होगी।
पर्यटकों को इस शोभायात्रा की ओर खींचने का यह प्रयास नि:संदेह है कोटा के पर्यटन के पंखों को नई ऊंचाई दे सकता हैं। बहरहाल, सारा दारोमदार जिला प्रशासन पर है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि नवाचार के लिए पहचाने जाने वाले वर्तमान जिला कलक्टर इस दिशा में कुछ करेंगे और कोटा के पर्यटन फलक पर नई इबारत लिखने की चेष्टा होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
dhitendra.sharma@gmail.com

Editing
बहरहाल, सारा दारोमदार जिला प्रशासन पर है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि नवाचार के लिए पहचाने जाने वाले व..

आस्था और व्यवस्था में संतुलन जरूरी

यहां पर्वों के उत्साहपूर्ण आयोजनों को संकुचित करने अथवा बांधने का सुझाव देने की मंशा कतई नहीं है। ना ही आम रास्तों के अवरुद्ध होने से जूझती ...