-धीतेन्द्र कुमार शर्मा -
मां चर्मण्यवती के किनारे स्थित कोटा शहर में पिछले 76 सालों से निकल रही अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा के वर्तमान आयोजन समिति के कुछ सदस्यों ने पिछले दिनों जिला कलक्टर को ज्ञापन सौंप कर बहुत महत्वपूर्ण सुझाव दिया था। मुझे नहीं पता कि जिला कलक्टर ने उसे कितनी गंभीरता से लिया और क्या कार्रवाई की, लेकिन सुझाव मेरे मत में उत्तम था और कोटा को धार्मिक पर्यटन के नक्शे पर उभारने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
आयोजक कार्यकर्ताओं ने जिला कलक्टर को पिछले दिनों अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा की भव्यता के बारे में बताते हुए सुझाव दिया था कि इस विशाल शोभायात्रा का लाइव प्रसारण पर्यटन विभाग के पोर्टल पर किया जाए और इसे पर्यटकों को आकर्षित करने की दृष्टि से पर्यटन विभाग के पोर्टल पर अपलोड भी किया जाए। बेशक, भले ही एक साधारण ज्ञापन के माध्यम से यह सुझाव मिला हो लेकिन कोटा को पर्यटन क्षेत्र में नई पहचान दिलाने में यह महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।
कोटा में अनंत चतुर्दशी का निकलने वाला भव्य जुलूस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं। शायद ही, मुंबई को छोड़कर, अन्य शहरों में या देश के किसी भूभाग में इतने भव्य स्तर पर शोभायात्रा निकलती हो। राजस्थान में तो एकलौता शहर कोटा ही है जहां ऐसी भव्यता से शोभायात्रा निकलती है। इस जुलूस की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर भर में 750 से ज्यादा गणपति उत्सव पांडाल सजाए जाते हैं और 10 दिन के उत्सव के बाद इन पांडालों में विराजित गणपति बप्पा को अनंत चतुर्दशी के दिन विदाई दी जाती है। मुख्य शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होती है। शोभायात्रा में 75 से ज्यादा अखाड़े होते हैं जो एक स्थान पर करीब 15 मिनट तक अपने करतब दिखाते हैं। किशोर सागर तालाब में 1000 से ज्यादा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन इस दिन होता है। डेढ़ सौ से ज्यादा झांकियां, तीन दर्जन से ज्यादा भजन मंडलियां और दर्जन भर से ज्यादा डांडिया रास टोलियां इस शोभायात्रा में अपना जलवा बिखेरती चलती है।
इतने व्यापक स्तर पर और अद्भुत भव्यता, सुर्ख केसरिया शौर्य के साथ आयोजित होने वाली शोभायात्रा का शहर से बाहर देश-दुनिया में पर्यटन पोर्टल के जरिए क्यों ना प्रचार प्रसार होना चाहिए? देश में आने वाला हर तीसरा पर्यटक राजस्थान और राजस्थान में आने वाले पर्यटकों का बड़ा वर्ग हाड़ौती में आता है। सावन भादो के इन महीनो में रामदेवरा में बाबा रामदेव का मेला, बूंदी और जयपुर की तीज की सवारी जैसे धार्मिक आयोजन होते हैं और बड़ी संख्या में पर्यटक इन्हें देखने पहुंचते भी हैं। ऐसे में कोटा की अनन्त चतुर्दशी शोभायात्रा को पर्यटन के नक्शे पर उभार दिया जाए और उसे दिशा में गंभीरता से प्रयास किए जाएं तो हाडोती की तरफ देसी -विदेशी पर्यटकों को खींचा जा सकता है। और, यहां पर्यटक आने पर रिवर फ्रंट, ऑक्सिजोन, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क समेत अन्य जो पर्यटन की दृष्टि से निर्माण हुए हैं उनका भी लाभ राजस्व की दृष्टि से शहर को मिल सकता है।
जहां तक सुझाव पर अमलीजामा पहनाने की बात है और पर्यटकों की व्यवस्था की बात है तो शोभायात्रा के दौरान तीन से चार जगह वर्गीकृत रूप से पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था की जा सकती है। इनमें शुरुआत स्थल सूरजपोल, कैथूनी पोल के अलावा मुख्य रूप से रामपुरा में महात्मा गांधी स्कूल और महारानी स्कूल के आसपास इनकी व्यवस्था की जा सकती है। पीछे ही बने रिवर फ्रंट से निकासी आदि का प्रबंध भी हो सकता है। रामपुरा इस शोभायात्रा का हृदय स्थल होता है और यहां पहुंचने पर शोभायात्रा अपने यौवन पर होती है, इसलिए सर्वाधिक पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था रामपुरा में किया जाना उचित होगा। विसर्जन देखने के इच्छुक पर्यटकों के लिए किशोर सागर तालाब स्थित बारहदरी में अलग से दीर्घा बना कर सीमित संख्या में पास देकर की जा सकती है।
पर्यटकों को इस शोभायात्रा की ओर खींचने का यह प्रयास नि:संदेह है कोटा के पर्यटन के पंखों को नई ऊंचाई दे सकता हैं। बहरहाल, सारा दारोमदार जिला प्रशासन पर है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि नवाचार के लिए पहचाने जाने वाले वर्तमान जिला कलक्टर इस दिशा में कुछ करेंगे और कोटा के पर्यटन फलक पर नई इबारत लिखने की चेष्टा होगी।
पर्यटकों को इस शोभायात्रा की ओर खींचने का यह प्रयास नि:संदेह है कोटा के पर्यटन के पंखों को नई ऊंचाई दे सकता हैं। बहरहाल, सारा दारोमदार जिला प्रशासन पर है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि नवाचार के लिए पहचाने जाने वाले वर्तमान जिला कलक्टर इस दिशा में कुछ करेंगे और कोटा के पर्यटन फलक पर नई इबारत लिखने की चेष्टा होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
dhitendra.sharma@gmail.com
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