Saturday, November 28, 2015

बहुत सिपाही भारत मां के

बहुत सिपाही वस्त्र सुसज्जित इस हमाम में हैं प्यारों,
नैतिकता का शीर्ष तिलक ईमान हलक में है यारों,

चंद जयचंदों की गद्दारी से भारत मां ना बंधक होगी,
चंद गंदगी के नालों से मां गंगा मैली ना होगी।

लगाके डुबकी देखो,
 तुमको बहुत नगीने मिल जाएंगे,
घर फूंक मुस्कान बिखरे
ऐसे दीवाने मिल जाएंगे,

ये दीवाने इसी धरा पर ज़मींदोज़ या जिंदा हैं,
फ़ख्र हमें है उन पर,
 कतई नहीं शर्मिन्दा हैं,

इन्हीं सितारों के कंधों पर लोकतंत्र ये जिंदा है,
जयचंदाें की गद्दारी पर तो हम भी यूं शर्मिन्दा हैं,

कुछ मेरा ये विश्वास करो,
न्यायोचित से प्यार करो,
कहो सितारे जय-जयकार
जयचंदों को हो धिक्कार ।
🙏🏻
धीतेन्द्र कुमार शर्मा
(दिनांक 28.11.2015 को शब्दबद्ध
मीडिया की हो रही चौतरफा कटु आलोचनाओं के बीच एक मौलिक स्वर)

To Listen Poem: Click Here
https://www.youtube.com/watch?v=2uadabKHXCo&t=84s

आस्था और व्यवस्था में संतुलन जरूरी

यहां पर्वों के उत्साहपूर्ण आयोजनों को संकुचित करने अथवा बांधने का सुझाव देने की मंशा कतई नहीं है। ना ही आम रास्तों के अवरुद्ध होने से जूझती ...