Monday, March 13, 2017

खुल्ला बोल : क्रांति की राह पर भारत देश....

संदर्भ- उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनाव परिणाम-



-धीतेन्द्र कुमार शर्मा-
 जरा 6 साल पहले अप्रेल 2011 में दिल्ली में जन्तर-मंतर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल को लेकर हुए अन्ना आन्दोलन की तस्वीरें याद कीजिये। इस आन्दोलन में उमड़े जनसमुदाय और उनकी हसरतों को याद कीजिए।  फिर देश भर में साल के अंत दिसंबर तक विभिन्न स्थानों पर हुए विरोध-प्रदर्शनों की याद ताजा कीजिए। और, अगस्त 2012 और इससे पहले कालेधन व 'व्यवस्था परिवर्तन' की मांग को लेकर हुुए बाबा रामदेव के आन्दोलन को याद कीजिए।
भारत में लोग इस तरह के प्रदर्शनों में अपनी भागीदारी में फख्र महसूस कर रहे थे। बच्चे, बूढ़े, जवान सभी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। अब इसी दौर में दुनिया पर नजर डालें। साल 2010 में थाईलैंड में 'स्थापित व्यवस्था' के खिलाफ आन्दोलन हुए। साल 2010-2011 में आइवरी लोग सड़कों पर उतरे, 2010 से 2012 तक  ताजिकिस्तान सुलगता रहा, 2010 में ही किर्गीस्तान में दूसरी क्रांति हुई।
उधर, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व भी दिसंबर 2010 से 2012 के मध्य तक (अरब स्प्रिंग) क्रांतियों के आगोश में रहा। सत्रह दिसंबर 2010 से ट्यूनिशिया से उठी चिनगारी ने इजिप्ट, लीबिया, यमन, सीरिया, इराक, लेबनान, जॉर्डन को अपनी जकड़ में ले लिया। इन सभी करीब दर्जन भर से ज्यादा क्रांतियों में 'स् थापित व्यवस्था और 'भ्रष्ट- राजव्यवस्था' का विरोध और बदलाव की बयार ही मुद्दा था। ज्यादातर देशों में बदलाव हुए भी और बगावत को कुचला भी गया।
अब भारत की तरफ वापस आइये। यहां कुछ 'बदलाव' का दिखावा तत्कालीन यूपीए-२ सरकार ने किया। कुछ दमन का भी। बाबा रामदेव का सलवार-सूट पहन भागने का उदाहरण सबके सामने है। लेकिन, यह भारत है। भारतवंशी प्राय: शांत-सहनशील माने जाते हैं। स्वभाव के अनुरूप भारतवंशी चुप रहे। अनडर-करंट चलता रहा। जनमत बनता गया। और, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी उस नैराश्य में आशा बनकर उभरे। सवा सौ करोड़ देशवासियों ने उन्हें आम चुनाव में खुले हाथ समर्थन दिया।
मोदी ने भी प्रधानमंत्री पद पर पारी की शुरुआत से पहले संसद को दंडवत अपनी प्राथमिकता 'भारत माता' जता दी। केबिनेट की पहली बैठक में काले धन पर एसआईटी का गठन कर नीयत साफ जता दी। ढाई साल के शासन में मोदी की साफगोई और राष्ट्र भक्ति असंदिग्ध हो गई है। उन्होंने अपनी छवि गढ़ ली है कि 'कोई तो बंदा है जो इस सो सिस्टम को बदलने के लिए लड़ रहा है। भारत माता के स्वाभिमान की रक्षा के लिए लड़ रहा है। राष्ट्र और राष्ट्रवासियों के उत्थान के लिए 'स्थापित व्यवस्था' से संघर्ष कर रहा है।  एक पंक्ति में कहें तो वे वर्तमान व्यावहारिक राजनीति का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं से इतर नैतिक प्रतिमानों की स् थापना के प्रति दृढ़ और असंभव के विरुद्ध संघर्ष करने वाले सर्वमान्य नेता बनते जा रहे हैं। इसी परिदृश्य में पांच राज्यों, खसकर उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों को देखा जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में भाजपा को प्रचंड 80 फीसदी जनादेश उसी आशा की प्रतिध्वनि है जो देश नरेन्द्र मोदी में देख रहा है। उत्तराखंड में भी मोदी का जलवा रहा। मणिपुर जैसे राज्य में भाजपा का उदय भी इसी आशा की अभिव्यक्ति है। गौर से देखें तो व्यवहारवादी-यथास्थितिवादी व्यवस्था के पोषक राजनेता ध्वस्त होते जा रहे हैं। पंजाब में अकाली और यूपी में सपा-बसपा की दुर्गति बहुत कुछ कह रही। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के आन् दोलनों के बाद अरविन्द केजरीवाल (आम आदमी पार्टीं) का उदय भी व्यवस्था में बदलाव के वास्ते संघर्ष का ही स्वर था। अब पंजाब में भी आप ने अच्छा दखल हासिल किया।
अब सारे परिदृश््य को जोड़कर देखें। दुनिया भर में भ्रष्ट व्यावस्था के खिलाफ हिंसक और अहिंसक क्रांतियां और राष्ट्रवाद की ओर लोगों का रुझान, भारत में आन् दोलनों का आगाज और मोदी का उदय। न केवल उदय, बल्कि जादू-सा चमत्कारिक समर्थन!  पूरा देश मोदी के खेमे में जाता दिख रहा। यह पूरा चित्र बहुत कुछ कह रहा है। शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे भांप भी गए। तभी तो रविवार (12 मार्च) को नई दिल्ली में कार्यकर्ताओं को दिए संबोधन में उन्होंने संकेत दिए। कहा, कि उन्हें इस प्रचण्ड बहुमत में भविष्य के 'नए भारत (न्यू इंडिया)' के दर्शन हो रहे हैं। मोदी भले ही स्पष्ट नहीं कह पाए। लेकिन, लगता है देश क्रांति की दहलीज पर खड़ा है। आम भारतीय अब भ्रष्ट और राष्ट्र घाती व्यवस्था से आजिज आ चुका। युवा इसे आगे चलने देने के मूड में कतई नहीं। 'डू और डाई' का मानस दिखने लगा। बस आड़े आ रही तो वह स्वभावगत शालीनता, धैर्य, सहनशीलता जिसके लिए भारतवंशियों को दुनिया सलाम करती है। लेकिन, मानकर चलिये भारतवासियों के लिएख्मोदी अंतिम 'चुनावी लोकतांत्रिक आशा' हैं।
साल 2011 से शुरू हुआ सफर भी इतिहासकार (भविष्य में होने वाले विश्लेषणों में) क्रांति का आगाज ही मानेंगे। अभी देश लोकतांत्रिक भरोसे से आखिरी आशा पर जान छिड़क रहा है। दिल खोल कर समर्थन दे रहा। संभव है कि 2019 में देश मोदी के साथ और खुलकर आए। मोदी को सर्वांगीण मजबूती दे। देश मोदीमय हो जाए। और, तब अपने सपनों का भारत मोदी से मांगे।
बस यही विकट कसौटी होगी। मोदी सफल हुए तो अमर हो जाएंगे। अन्यथा, जैसा ऊपर कहा, देश सशक्त क्रांति की दहलीज पर खड़ा है। वर्तमान संसदीय लोकतांत्रिक चरण की पूर्णाहुति मोदी काल के साथ हो जाएगी।  फिर, संभव है नया महायज्ञ शुरू हो। महायज्ञ नए स्वराज का। ठीक वैसा ही जैसा आप और हम पुस्तकों पढ़ते हैं। 1857 से लेकर 1947 तक के चरण में। फिर नए मंगल पांडे, सुभाष बोस चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, से लेकर बाल-पाल-लाल और गांधी पैदा होंगे। और ये होंगे आपके हमारे बीच से ही। बहरहाल, पहली प्राथमिकता से दुआ की जानी चाहिए कि अहिंसा और मजबूत लोकतंत्र का पुजारी माना जाने वाला भारत शांत लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही अपने बदलाव के उद्देश्यों को पूरा कर ले। नहीं, तो दूसरे पहलू के अभिनन्दन को देश तो तैयार है ही।  और, हम भी।
                           dhitendra.sharma@epatrika.com/ dhitendra.sharma@gmail.com        (दिनांक 13 मार्च 2017 को लिखित/ प्रकाशित)

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