संदर्भ- शराबबंदी और महिला आन्दोलन
''शराब पीने और पिलाने वाली सरकार का बहिष्कार करना चाहिए।''
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
-धीतेन्द्र कुमार शर्मा-
बूंदी के छपावदा गांव में एक युवक ने गुजरे शनिवार(15 अप्रेल को) अपनी मां का सिर शराब के नशे में सिर्फ इसलिए फोड़ दिया कि वह उसे शराब पीने के वास्ते पैसे नहीं देती। शराब पीकर पति-पत्नी में झगड़ा अक्सर मीडिया में आता है। यही झगड़ा कभी मासूम बच्चों की हत्या, तो कभी पत्नी के बच्चों समेत आत्महत्या की परिणति के रूप में छपता-ब्रॉडकास्ट होता है। शराब से सर्वाधिक प्रताडि़त महिलाएं ही हैं। और, यही वजह है कि राजस्थान की धरती के विभिन्न अंचलों में ये 'मर्दानियां' शराब के खिलाफ खम ठोक रही हैं। इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को राजी हैं। बारां शहर में कानून के रखवालों ने नहीं सुनी तो उन्होंने खुद कानून हाथ में ले लिया। हिरासत तक में पहुंच गई पर आन्दोलन नहीं छोड़ा। उदयपुर में मचा बवाल किसी से छुपा नहीं। और, कमाल देखिये कि सब जगह, मांग है कि ये दुकानें आबादी या मंदिर क्षेत्र से हटें या बंद हों। राजसमंद के एक गांव में तो बाकयदा मतदान के बाद शराब की दुकान हटानें का निर्णय किया गया। यहीं ६ और गांवों में वोटिंग की मांग को लेकर महिलाएं आंदोलनरत हैं। कोटा में लगातार विरोध के बाद अटवाल नगर की दुकान का स्थान आबकारी विभाग को बदलना ही पड़ा।
यह सही है कि हर बार नए ठेके होने पर इस तरह के विरोध-प्रदर्शन होते हैं। उनके पीछे ऐसे लोग भी होते हैं जो ठेका लेने से वंचित रह गए। कुछ दिन के विरोध के बाद ये ठंडे पड़ जाते हैं। लेकिन, इस बार की फिजां कुछ अलग दिख रही। एक तो सामान्य प्रदर्शन ना होकर यहां महिलाएं ही मोर्चे पर हैं। दूसरे नारी शक्ति को मीडिया का भी अघोषित समर्थन मिल रहा है। शायद यह भी एक वजह है कि उनका मनोबल ऊंचा है और सरकारी मशीनरी का कमजोर! एक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि शराबबंदी को लेकर अनशन में ही दिवंगत हो गए पूर्व विधायक गुरुचरण छाबड़ा की पुत्री पूजा छाबड़ा सक्रिय हुई हैं। वे प्रदेश के विभिन् न स्थानों पर जाकर महिलाओं का हौसला बढ़ा भी रही। पर, विडंबना यह कि महिलाओं का कोई प्रदेश या राष्ट्रव्यापी संगठन सामने नहीं आया है। धमक जरूर पूरे देश-प्रदेश में बज रही।
शराबबंदी की बात करें तो देश में गुजरात, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और बिहार में पाबंदी है। और, महत्वपूर्ण यह कि इस पाबंदी में भी नारी आन्दोलनों की ही भूमिका रही। बिहार का तो खुला उदाहरण है। शराबबंदी के मुद्दे पर नीतीश कुमार सत्ता में दुबारा आए। उन्होंने आते ही अपना वादा निभाया भी। वे तो दावा भी करते हैं कि शराबबंदी के बाद औसत बिहारी का जीवन स्तर उठा है। तमिलनाडु में एक कानून की छात्रा नंदिनी आनन्दन ने 200 विद्याथियों की चेन बनाई है जो वहां शराब बंदी के लिए संघर्ष कर रही। वे स्पष्ट कहती हैं कि सरकार ने 13 से 14 साल की पीढ़ी को बर्बाद कर दिया। वहां महिलाओं और विद्यार्थियों के विरोध का ही नतीजा है कि चुनाव में यह मुद्दा बना और शपथ ग्रहण करते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयलिता ने सरकार समर्थित शराब की दुकानों के घंटे घटा दिए। साथ ही 500 दुकानें बंद भी कर दी। हालांकि, पूर्ण शराबबंदी नहीं हुई। संघर्ष अभी जारी है ही।
हालिया यूपी चुनाव में भी नीतीश कुमार ने शराबबंदी के मुद्दे को उठाया। भाजपा को दबे स्वर मानना भी पड़ा। अभी वहां भी महिलाएं खम ठोक रही हैं। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और आबकारी मंत्री ने भी स्पष्ट किया कि जहां विरोध है और लोग शराब के खिलाफ हैं, वहां जांच के बाद दुकानें हटा दी जाएंगी। लोगों की भावनाओं का आदर होगा।
अब राजस्थान वापस आ जाइये। चुनाव हमारे भी नजदीक ही हैं। साल 2018 के दिसंबर में होंगे। महिलाओं की मांग को जिस तरह स्वर मिल रहा, समर्थन मिल रहा, इससे कुछ आस बांधी जा सकती है। माहौल बनने लगा है। जरूरत केवल संगठित होने की है। अन्य सामाजिक संगठन अभी शायद स्वाद के लोभ में शांत बैठे हैं। पुरुषों को तो जैसे सांप सूंघ गया। धौलपुर और मप्र के मुरैना आदि इलाकों में एक संत बाबा जरूर पंचायत करके शराब छुड़ाने की मुहिम चला रहे। डेढ़ सौ से ज्यादा गांवों में पंचायत कर चुके। बाकी 'मर्द' चुप हैं। पर कोई बात नहीं। नारी श िक्त को कमतर क्यों आंका जाए? मातएं-बहिनें अगर जुटी रहीं तो नतीजे उनके पक्ष होने की उम्मीद की जा सकती है। और, राजस्थान ही क्यों, इस साल भी कुछ राज्यों में चुनाव होने हैं। अगले साल राजस्थान के साथ ही मप्र छत्तीसगढ़ समेत 5 राजयों में चुनाव होंगे। फिर लोक सभा के आम चुनाव। अगर स्वर समवेत होते गए तो ताज्जुब नहीं ऐतिहासिक फैसला देशव्यापी हो जाए।
हालांकि दुनिया भर में पैदा होने वाली शराब का 20 फीसदी हिस्सा पी जाने वाले इस दुनिया के तीसरे बड़े शराब बाजार देश में ये इतना आसान नहीं। हमारे ज्यादातर राज्यों की 20 फीसदी से ज्यादा, कई की तो 23 से 25 फीसदी तक राजस्व आय अकेले शराब बेचान से आती है। राजस्थान में ही 61 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का राजस्व शराब से आता है। ऐसोसिएट चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (ऐसोचैम) के कुछ साल पहले के अध्ययन में कड़वा सच ये भी सामने आया कि देश में शराब इंडस्ट्री 30 फीसदी की ग्रोथ से बढ़ रही। पूरे देश में करीब 1.45 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का शराब कारोबार है। ऐसोचैम के मुताबिक भारत में करीब 19 अरब लीटर शराब की सालाना खपत है, जिसमें 48 फीसदी हिस्सा देसी दारू का है। जरा सोचिये, देसी दारू कौन हलक में ज्यादा उतारता है। जाहिर है, गरीब तबका। बर्बाद भी वही हो रहा। पर महिलाएं सभी तबके की पीडि़त।
माना कि, तथ्य और सरकारी राजस्व लोभ के मद्देनजर चुनौती विकट है! पर, नारी शक्ति हार मान लें चुनौती ऐसी भी नहीं! शराबबंदी के खिलाफ नारी शक्ति का संघर्ष पुराना है। ऐतिहासिक भी! ब्रिटिश शासित भारत में साल 1925 में करीब 30 हजार महिलाओं ने कांग्रेस के आह्वान पर तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड रीडिंग को शराबबंदी की मांग को लेकर ज्ञापन दिया था। तब ब्रिटिश भारत की जनसंख्या करीब ३२ करोड़ थी। यानी तकरीबन 9-10 फीसदी महिलाएं एकजुट हो गई थी। आज भले ही कांग्रेस मरणासन्न है, पर नारी शक्ति वही है। बल्कि अधिक सशक्त! जरा सोचिए, उसी अनुपात में आज की 10 फीसदी नारी भी एकजुट हाकर देशव्यापी मुहिम छेड़ दें तो...? कौन रोक पाएगा उन्हें तब! खास बात यह कि लोकसभा चुनाव भी 2019 में हैं। महात्मा गांधी की 150 वीं जन्म जयंती महोत्सव भारत सरकार मनाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार गांधीजी के 'चश्मे और झाडू' को हथिया ही चुकी। स्वच्छता का तोहफा देने की मुहिम चला रही। गांंधीजी खुद शराबबंदी के बड़े पैरोकार रहे। खुद उन्होंने आंदोलन चलाए। अपने अखबार यंग इंडिया में तो उन्होंने इतना तक लिखा कि उन्हें एक घंटे के लिए भी भारत का शासक बना दिया जाए तो पहला काम बिना कोई क्षतिपूर्ति दिए शराब की दुकानें बंद कराने का करेंगे। ऐसे में गांधीजी को 150 जयंती पर शराबबंदी का तोहफा क्यों नहीं दिया जा सकता!
मानकर चलिये, रणनीतिक लिहाज से सर्वाेत्तम अनुकूल वक्त है। देश का नेतृत्व भी ऐसे व्यक्ति के हाथ में है जिसने मुख्यमंत्री रहते अपने प्रदेश में शराब पर पाबंदी लगाई। राष्ट्रव्यापी समर्थन और मुहिम से ताकत मिले तो असंभव कुछ नहीं। और, यह ताकत बेशक नारी शक्ति में निहित है। भरोसा करें, वे प्रदेश ही नहीं, भारतभूमि पर शराबबंदी की मिसाल बन सकती है, Yes # She Can...
dhitendra.sharma@epatrika.com/ dhitendra.sharma@gmail.com (दिनांक 21 अप्रेल 2017 को लिखित/ प्रकाशित)
''शराब पीने और पिलाने वाली सरकार का बहिष्कार करना चाहिए।''
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
-धीतेन्द्र कुमार शर्मा-
बूंदी के छपावदा गांव में एक युवक ने गुजरे शनिवार(15 अप्रेल को) अपनी मां का सिर शराब के नशे में सिर्फ इसलिए फोड़ दिया कि वह उसे शराब पीने के वास्ते पैसे नहीं देती। शराब पीकर पति-पत्नी में झगड़ा अक्सर मीडिया में आता है। यही झगड़ा कभी मासूम बच्चों की हत्या, तो कभी पत्नी के बच्चों समेत आत्महत्या की परिणति के रूप में छपता-ब्रॉडकास्ट होता है। शराब से सर्वाधिक प्रताडि़त महिलाएं ही हैं। और, यही वजह है कि राजस्थान की धरती के विभिन्न अंचलों में ये 'मर्दानियां' शराब के खिलाफ खम ठोक रही हैं। इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को राजी हैं। बारां शहर में कानून के रखवालों ने नहीं सुनी तो उन्होंने खुद कानून हाथ में ले लिया। हिरासत तक में पहुंच गई पर आन्दोलन नहीं छोड़ा। उदयपुर में मचा बवाल किसी से छुपा नहीं। और, कमाल देखिये कि सब जगह, मांग है कि ये दुकानें आबादी या मंदिर क्षेत्र से हटें या बंद हों। राजसमंद के एक गांव में तो बाकयदा मतदान के बाद शराब की दुकान हटानें का निर्णय किया गया। यहीं ६ और गांवों में वोटिंग की मांग को लेकर महिलाएं आंदोलनरत हैं। कोटा में लगातार विरोध के बाद अटवाल नगर की दुकान का स्थान आबकारी विभाग को बदलना ही पड़ा।
यह सही है कि हर बार नए ठेके होने पर इस तरह के विरोध-प्रदर्शन होते हैं। उनके पीछे ऐसे लोग भी होते हैं जो ठेका लेने से वंचित रह गए। कुछ दिन के विरोध के बाद ये ठंडे पड़ जाते हैं। लेकिन, इस बार की फिजां कुछ अलग दिख रही। एक तो सामान्य प्रदर्शन ना होकर यहां महिलाएं ही मोर्चे पर हैं। दूसरे नारी शक्ति को मीडिया का भी अघोषित समर्थन मिल रहा है। शायद यह भी एक वजह है कि उनका मनोबल ऊंचा है और सरकारी मशीनरी का कमजोर! एक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि शराबबंदी को लेकर अनशन में ही दिवंगत हो गए पूर्व विधायक गुरुचरण छाबड़ा की पुत्री पूजा छाबड़ा सक्रिय हुई हैं। वे प्रदेश के विभिन् न स्थानों पर जाकर महिलाओं का हौसला बढ़ा भी रही। पर, विडंबना यह कि महिलाओं का कोई प्रदेश या राष्ट्रव्यापी संगठन सामने नहीं आया है। धमक जरूर पूरे देश-प्रदेश में बज रही।
शराबबंदी की बात करें तो देश में गुजरात, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और बिहार में पाबंदी है। और, महत्वपूर्ण यह कि इस पाबंदी में भी नारी आन्दोलनों की ही भूमिका रही। बिहार का तो खुला उदाहरण है। शराबबंदी के मुद्दे पर नीतीश कुमार सत्ता में दुबारा आए। उन्होंने आते ही अपना वादा निभाया भी। वे तो दावा भी करते हैं कि शराबबंदी के बाद औसत बिहारी का जीवन स्तर उठा है। तमिलनाडु में एक कानून की छात्रा नंदिनी आनन्दन ने 200 विद्याथियों की चेन बनाई है जो वहां शराब बंदी के लिए संघर्ष कर रही। वे स्पष्ट कहती हैं कि सरकार ने 13 से 14 साल की पीढ़ी को बर्बाद कर दिया। वहां महिलाओं और विद्यार्थियों के विरोध का ही नतीजा है कि चुनाव में यह मुद्दा बना और शपथ ग्रहण करते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयलिता ने सरकार समर्थित शराब की दुकानों के घंटे घटा दिए। साथ ही 500 दुकानें बंद भी कर दी। हालांकि, पूर्ण शराबबंदी नहीं हुई। संघर्ष अभी जारी है ही।
हालिया यूपी चुनाव में भी नीतीश कुमार ने शराबबंदी के मुद्दे को उठाया। भाजपा को दबे स्वर मानना भी पड़ा। अभी वहां भी महिलाएं खम ठोक रही हैं। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और आबकारी मंत्री ने भी स्पष्ट किया कि जहां विरोध है और लोग शराब के खिलाफ हैं, वहां जांच के बाद दुकानें हटा दी जाएंगी। लोगों की भावनाओं का आदर होगा।
अब राजस्थान वापस आ जाइये। चुनाव हमारे भी नजदीक ही हैं। साल 2018 के दिसंबर में होंगे। महिलाओं की मांग को जिस तरह स्वर मिल रहा, समर्थन मिल रहा, इससे कुछ आस बांधी जा सकती है। माहौल बनने लगा है। जरूरत केवल संगठित होने की है। अन्य सामाजिक संगठन अभी शायद स्वाद के लोभ में शांत बैठे हैं। पुरुषों को तो जैसे सांप सूंघ गया। धौलपुर और मप्र के मुरैना आदि इलाकों में एक संत बाबा जरूर पंचायत करके शराब छुड़ाने की मुहिम चला रहे। डेढ़ सौ से ज्यादा गांवों में पंचायत कर चुके। बाकी 'मर्द' चुप हैं। पर कोई बात नहीं। नारी श िक्त को कमतर क्यों आंका जाए? मातएं-बहिनें अगर जुटी रहीं तो नतीजे उनके पक्ष होने की उम्मीद की जा सकती है। और, राजस्थान ही क्यों, इस साल भी कुछ राज्यों में चुनाव होने हैं। अगले साल राजस्थान के साथ ही मप्र छत्तीसगढ़ समेत 5 राजयों में चुनाव होंगे। फिर लोक सभा के आम चुनाव। अगर स्वर समवेत होते गए तो ताज्जुब नहीं ऐतिहासिक फैसला देशव्यापी हो जाए।
हालांकि दुनिया भर में पैदा होने वाली शराब का 20 फीसदी हिस्सा पी जाने वाले इस दुनिया के तीसरे बड़े शराब बाजार देश में ये इतना आसान नहीं। हमारे ज्यादातर राज्यों की 20 फीसदी से ज्यादा, कई की तो 23 से 25 फीसदी तक राजस्व आय अकेले शराब बेचान से आती है। राजस्थान में ही 61 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का राजस्व शराब से आता है। ऐसोसिएट चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (ऐसोचैम) के कुछ साल पहले के अध्ययन में कड़वा सच ये भी सामने आया कि देश में शराब इंडस्ट्री 30 फीसदी की ग्रोथ से बढ़ रही। पूरे देश में करीब 1.45 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का शराब कारोबार है। ऐसोचैम के मुताबिक भारत में करीब 19 अरब लीटर शराब की सालाना खपत है, जिसमें 48 फीसदी हिस्सा देसी दारू का है। जरा सोचिये, देसी दारू कौन हलक में ज्यादा उतारता है। जाहिर है, गरीब तबका। बर्बाद भी वही हो रहा। पर महिलाएं सभी तबके की पीडि़त।
माना कि, तथ्य और सरकारी राजस्व लोभ के मद्देनजर चुनौती विकट है! पर, नारी शक्ति हार मान लें चुनौती ऐसी भी नहीं! शराबबंदी के खिलाफ नारी शक्ति का संघर्ष पुराना है। ऐतिहासिक भी! ब्रिटिश शासित भारत में साल 1925 में करीब 30 हजार महिलाओं ने कांग्रेस के आह्वान पर तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड रीडिंग को शराबबंदी की मांग को लेकर ज्ञापन दिया था। तब ब्रिटिश भारत की जनसंख्या करीब ३२ करोड़ थी। यानी तकरीबन 9-10 फीसदी महिलाएं एकजुट हो गई थी। आज भले ही कांग्रेस मरणासन्न है, पर नारी शक्ति वही है। बल्कि अधिक सशक्त! जरा सोचिए, उसी अनुपात में आज की 10 फीसदी नारी भी एकजुट हाकर देशव्यापी मुहिम छेड़ दें तो...? कौन रोक पाएगा उन्हें तब! खास बात यह कि लोकसभा चुनाव भी 2019 में हैं। महात्मा गांधी की 150 वीं जन्म जयंती महोत्सव भारत सरकार मनाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार गांधीजी के 'चश्मे और झाडू' को हथिया ही चुकी। स्वच्छता का तोहफा देने की मुहिम चला रही। गांंधीजी खुद शराबबंदी के बड़े पैरोकार रहे। खुद उन्होंने आंदोलन चलाए। अपने अखबार यंग इंडिया में तो उन्होंने इतना तक लिखा कि उन्हें एक घंटे के लिए भी भारत का शासक बना दिया जाए तो पहला काम बिना कोई क्षतिपूर्ति दिए शराब की दुकानें बंद कराने का करेंगे। ऐसे में गांधीजी को 150 जयंती पर शराबबंदी का तोहफा क्यों नहीं दिया जा सकता!
मानकर चलिये, रणनीतिक लिहाज से सर्वाेत्तम अनुकूल वक्त है। देश का नेतृत्व भी ऐसे व्यक्ति के हाथ में है जिसने मुख्यमंत्री रहते अपने प्रदेश में शराब पर पाबंदी लगाई। राष्ट्रव्यापी समर्थन और मुहिम से ताकत मिले तो असंभव कुछ नहीं। और, यह ताकत बेशक नारी शक्ति में निहित है। भरोसा करें, वे प्रदेश ही नहीं, भारतभूमि पर शराबबंदी की मिसाल बन सकती है, Yes # She Can...
dhitendra.sharma@epatrika.com/ dhitendra.sharma@gmail.com (दिनांक 21 अप्रेल 2017 को लिखित/ प्रकाशित)
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