Thursday, November 14, 2019

मैंने जीवन चलते देखा है

मैंने जीवन चलते देखा है,

अपने खिलते ढलते देखा है,

आने की होती तय अवधि,

अपने औचक जाते देखा है,

हत्या देखी और हत्यारे,

बच्चे- वृद्ध और युवा कुँवारे,

सपनो को गलते देखा है

मैंने जीवन चलते देखा है।


पर हर अरुणोदय होता नूतन,

जीवन का अदभुत परिवर्तन,

तृण तृण से फिर नीड सृजन,

भावों को पलते देखा है,

मैंने जीवन चलते देखा है।


सुबह हुई तो साँझ भी होगी

यही प्रभु की माया,

सृष्टि सृजन से नियत यही सब,

कोई समझ न पाया,


पुरुषार्थ-दीप के सम्मुख भीरू,

अंधकार जलते देखा है,

हाँ, मैंने जीवन चलते देखा है।।


-धीतेन्द्र कुमार शर्मा

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