संदर्भ- #रणवीरचौधरीहत्याकांड #KotaGangwar
-धीतेन्द्र कुमार शर्मा-शाम करीब पौने आठ बजे (रविवार, 22 दिसंबर) पिताजी ने टीवी स्क्रीन पर आई पट्टी कोटा में हिस्ट्रीशीटर रणवीर चौधरी की गोली मारकर हत्या पढ़ा तो मेरे कान खड़े हो गए। पौने छह वर्ष की वय से इस शहर में चंबल का पानी पीने और 20 वर्ष के पत्रकारीय कर्म के चलते यह नाम मेरे लिए अपरिचित न था। इस बीच डेढ़ वर्ष झालावाड़, फिर 2 वर्ष से कोटा में पदस्थापन ने इस दिशा में और ज्ञानवर्धन किया। प्रोपर्टी विवाद, लूट, हत्या और मारपीट जैसे कृत्यों में यह नाम बड़े अक्षरों में आता था। दो गैंगस्टरों के साथी के रूप में कार्य करने का ठप्पा भी इस नाम के साथ है। पिताजी के टीवी की पट्टी पढऩे के वक्त मैं कुछ जरूरी कार्य निपटा रहा था। यूं भी मीडिया का ध्वज बुलंद करने वाले कई बैनर फेसबुक लाइव कर रहे थे (भले ही आरोपियों से जुड़े संगठित अपराध जगत के सरगना उन्हें देख मौके की जानकारियां जुटा रहे हों।)। कुछ वीडियो में तो नाकाबंदी करो, व्हाइट गाड़ी थी...जैसे पुलिस अधिकारियों के वाक्य तक सुनाई दे रहे थे। सो मैं अपना काम निपटाता रहा। घटना के बाद मौके पर पहुंचे एक टीम सदस्य से फीडबैक बराबर आ रहा था।
वारदात की तीन घंटे बाद रणवीर के मोहल्ले में पसरा सन्नाटा।
घटना के करीब तीन घंटे बाद करीब, सवा नौ बजे मैं टीचर्स कॉलोनी की ओर पहुंचा। चौथ माता मंदिर के पास स्थित रणवीर के आवास ना तो ऐसी कोई शोकाभिव्यक्ति वाली भीड़ थी जो आम तौर पर सामान्य गमी में होती है, और ना ही अखबारी और इलेक्ट्रोनिक मीडिया की भारी-भरकम शब्दावली जितनी सनसनी मुझे महसूस हुई। मोहल्ले में खड़ी एक दर्जन कारें जो प्राय: यहां नहीं दिखती हैं, नजर आई। और, घर के बाहर एक दर्जन करीब लोग खड़े थे। करीब 13 डिग्री सेल्सियस तापमान और पांच किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही शीतलहर में थोड़ी गर्माहट थी तो वह सिर्फ चार-पांच जनों के बने 50 से 70 मीटर दूर-दूर छितराए समूहों में हो रही तटस्थ कानाफूसी और रोजमर्रा में नुक्कड़ पर जलते दो-तीन अलावों की। मंदिर के चारों ओर के मोहल्लों में एक सन्नाटा सा पसरा था। मैंने कुछ समूहों की चर्चा में गुमनामी शिरकत भी की। कहीं कोई अप्रत्याशना-महसूस नहीं हुई। ना विशेष शिकन दिखी, ना ही विचलन। संभवत: मोहल्लेवासी मृतक के कथित प्रोफेशन से परिचित थे। यूं भी ऐसे मसलों का हश्र किसी भी विवेकसमृद्ध मनुष्य से छिपा नहीं होता। दीर्घायु का दावा शायद ही कोई कर पाए। तथ्यों पर शांत चर्चा जरूर थी। वारदात से आधे घंटे पहले मोहल्ले के लोगों ने उसे स्कूटर पर निकलते देखा था। अमूमन वह अपनी कार से ही दिखता था। थोड़ी देर बाद कार मंगाई बताई। उसके बाद घटना हो गई (हालांकि मीडिया रिपोट्र्स में उसे कार से जाना और पीछा कर रहे युवकों द्वारा ताबड़तोड़ गोली मारना बताया गया है।)। चर्चा यह भी थी कि स्टेडियम में खेलने जितना वक्त आज नहीं लगा। घटना और मोहल्ले से निकलने के बीच आधा घंटे का ही फासला था। तो क्या घटना का अहसास या कोई इनपुट मिल गया था उसे लेकिन निकल नहीं पाया। या महज संयोग रहा। जितने समूह, उतनी बातें। एक टोली में तीन दिन पहले बुलट बाइक पर तीन युवकों के रात में 9-10 बजे नशे में आकर रणवीर का पता पूछने की बात भी थी। गाली-गलौज के साथ उन्होंने यह भी कहा बताया कि बड़ा दादा बन रहा, निकालनी पड़ेगी। खैर, ये सब सुस्त चर्चाएं थी।
करीब साढ़े 10 बजे मैं मोहल्ले से निकल महावीर नगर थर्ड चौराहा, टीचर्स कॉलोनी मोड़ से आगे जाकर पीछे के मोहल्ले होता हुआ पुन: मंदिर तक लौटा। पंद्रह मिनट के इस पैदल दौरे में मैनरोड पर जरूर दो पुलिस गाडिय़ां दौड़ती दिखी। बाकी जनजीवन रोजमर्रा की तरह सामान्य था। चाट ठेलों से लेकर राहगीरों में चर्चा जरूर थी। हत्यारों के रावतभाटा की ओर भाग निकलने के कयास भी। इधर, अब तक दो चार ही लोग घर के बाहर थे। तापमान में एक डिग्री की कमी होते और गहराती रात के साथ वे भी चले गए। रात 12 बजते बजते मोहल्ले में पूरी तरह सन्नाटा हो गया।
गैंगवार कोटा के लिए ना तो नई बात है और ना चकित करने वाली घटना। और, जिन लोगों पर या जिस गैंग पर संदेह जताया जा रहा है, पुराने लोग उनके इसी शहर में ऑटो चलाने तक के किस्से जानते हैं। बृजराज सिंह, लाला बैरागी, भानुप्रताप सिंह, रमेश जोशी समेत तमाम मामले लोगों के जेहन में है। शेष में अब कौन किसके निशाने पर संभव है, इससे भी संभवत: पुराने लोग वाकिफ हैं। बहरहाल, वक्त के साथ ये चीजें कम हो रही हैं। गैंगस्टर्स ने भी प्रोफेशनल रूप ले लिया तभी तो रणवीर के दशकों से इस संभ्रांत माहेल्ले में निवास होने के बाद भी दबाव या तनाव या झगड़े का कोई एक उदाहरण नहीं है। कई नए लोग तो यह तक नहीं जानते थे कि अखबारों में छपने वाला नाम रणवीर उनके पड़ोस वाला ही है। उसकी छवि एक अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के रूप में थी। वर्चस्व की लड़ाई कहें या प्रोफेशनल होने के कारण कारोबार विस्तार, हितों का संघर्ष आदि। कानून से इतर ये ही आपस में स्वनिर्णीत न्याय कर रहे हैं। इस तरह की वारदातें नितांत निजी ही होती हैं। हत्यारे टारगेट पर ही आए थे तभी ताबड़तोड़ सिर में गोलियां दागी। भागने की सुविधा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के साथ ही वक्त और स्थान ऐसा चुना कि कोई अन्य हताहत न हो।
लिहाजा, ओजस्वी अखबारबाजों-मीडिया धुरंधरों की प्तदिनदहाड़ेफायरिंग, प्तकोईसुरक्षितनहीं, प्तअसुरक्षितकोटा, जैसी सनसनीखेज विद्वतापूर्ण शब्दावली से अप्रभावित रहकर समाज को इन्हें एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना और सिर्फ घटना की तरह लेना चाहिए। स्टेडियम और समीपवर्ती 500 मीटर में जमा भीड़ को छोड़ दें तो सुभाष सर्किल, तीन बत्ती, संतोषी नगर से रणवीर के मोहल्ले तक निवासरत समाज का बहुत बड़ा हिस्सा शायद यही संदेश दे रहा था। कानून अपना काम कर ही रहा है। वारदात में उपयोग ली गई गाड़ी पुलिस ने तत्काल डिटेन कर ली, भरोसा किया जाना चाहिए कि जल्द आरोपी पकड़े जाएंगे और न्याय व्यवस्था निर्णय देगी। #GangsOfKota
#DhitendraSharma
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