Thursday, January 2, 2020

#JKLonHospitalKota : इन मौतों पर शोक के बजाय हल्ला क्यों?


-धीतेन्द्र कुमार शर्मा

पिछले आठ दिन से जो कुछ  #जेकेलोनअस्पतालकोटा के नाम पर हो रहा उसमें मुझे लोकतंत्र के स्थापित और स्वयंभू स्तंभों के द्वारा आमजनता का मखौल उड़ाने के सिवाय कुछ नहीं दिखता। मीडिया ट्रायल में ज्यों-ज्यों परतें उधड़ रही हैं क्रूर अट्टहास और बढ़ता जा रहा। दोष किसे दें, उन राजनेताओं को जो पांच-पांच वर्ष के राज्याधिकार के प्रति आश्वस्त भाव से कर्मरत हैं, या उन जनप्रतिनिधियों को जिन्हें अपने दो दशकीय चुनावी जनप्रतिनिधित्व जीवन में राज्य और देश की सर्वोच्च पंचायत तक में बैठते वक्त यह सब होता नहीं दिखा, भले ही इस दौरान उनके दल शासन में रहे। या फिर उन सरकारी मुलाजिमों को, जो इन भाईसाहबजनों के साथ जुगलबंदी निभाने में ही अधिक योगरत रहते हैं, अथवा वर्षों से अनवरत दम तोड़ तोड़ती सांसों के प्रति उतने ही अनुकूलित हो गए हैं, एवरेज डेथ रिव्यू से ऊपर उनकी नजरें नहीं जाती। या फिर दोष उन स्वयंभू चौकीदारों को दें जो सबकुछ देखने के बावजूद इन भाईसाहबजनों के एंगल से विचार कर, चौतरफा सरकारी सिस्टम से रिश्तों या कथित सामाजिक सरोकारों में भागीदारी की प्रबन्धकीय बंदिशों के मद्देनजर संतुलन साधकर साख-सेवा बचाकर कुछ प्रकाश में लाना चाहते हैं।

बहरहाल, पिछली 25 तारीख से हल्ला ये मचा है कि 23 और 24 दिसंबर को जेकेलोन में 10 बच्चों की मौत हो गई। प्रमुख समाचार-पत्रों में यह कथित एक्सक्लूसिव की तरह ब्रेक हुई। #रणवीरचौधरीहत्यांकांड और #पन्नालालरिश्वतप्रकरण में पन्ने लाल करने में ध्यानकेन्द्रित चतुर्थ स्तंभ के पैरोकारों ने इसे (एकाध को छोड़कर)अन्दर के पन्नों पर स्थान दिया। एकाधिक समाचार-पत्रों में खबर एक साथ ब्रेक होना भी जेकेलोन अस्पताल के अन्दरूनी हालात का संकेत तो देता ही है। इसके दो दिन बाद 27 दिसंबर को घूमे राजनीतिक घटनाक्रम के तहत पिछले 6 वर्ष से कोटा से सांसद और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ट्वीट कर जेकेलोन अस्पताल के बारे में अवगत कराया। उसी दिन केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तंज कसा कि पहले कोटा के अस्पताल के हालात देखकर आएं।

इसके बाद जो कोहराम मचा हुआ है शायद शोकसंतृप्त भी अचंभित हों। बात भाजपा-कांग्रेस की सरकारों की आ गई। सीएम समर्थक-विरोधी खेमे सक्रिय हो गए। मेडिकल कॉलेज प्रशासन स्तर पर जांच कमेटी बनी, जयपुर से चिकित्सा शिक्षा सचिव वैभव गालरिया के नेतृत्व में एक्सपर्ट कमेटी जांच को भेजी गई। साल भर पहले राजस्थान में सत्ता से दूर हुई और दो वर्ष पूर्व स्वाइन फ्लू-डेंगू से कोटा में ही हुई बेशुमार मौतों को नकार कर फजीहत कराने वाली भाजपा ने अपनी जांच कराई। जांच करने भी तत्कालीन चिकित्सा मंत्री ही आए। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की टीम भी आई। इन सब में गौरतलब बात यह कि मूल खबर को अन्दर के पेज पर साधारण डिस्प्ले में सिमेटने वाले बैनर अब पेज निकालने लगे। इस राजनीतिक हल्ले को कवर करने और मीडिया ट्रायल की जैसे होड़ लग गई।  इधर, इस सबके बीच बच्चों का मरना जारी रहा और वर्षान्त तक दिसंबर माह में मौतों का आंकड़ा 100 के अंक को छू गया। यूं भी इस माह 77 बच्चे तो 24 तारीख तक दम तोड़ ही चुके थे।

सामूहिक लापरवाही का दुष्परिणाम

इस ट्रायल में ऐसे आंकड़े सामने आते रहे जिनसे धूर्तता बेनकाब होती रही। कीचड़ सब पर उछला, कुछ पर प्रत्यक्ष, कुछ पर अप्रत्यक्ष। लोगों को इसने चिंतन में डाला भी। हर साल #जेकेलोनअस्पताल में हजार से ऊपर नवजात मौत के आगेाश में चले जाते हैं। वर्ष 2014 से ढंकी चादर उघड़ गई। वर्ष 2014 में 1198, साल 2015 में 1260, 2016 में 1193, 2017 में 1027, 2018 में 1005 और इस साल 963 बच्चे काल के गाल में समाए। सत्ता के वर्ष और दलीय आरोपों की झड़ी इससे समझ सकते हैं। बच्चों के भर्ती होने के आकड़ों के लिहाज से 6 से साढ़े 7 प्रतिशत के बीच मौतों का आंकड़ा विभिन्न वर्षों में झूलता रहा।

हल्ले के बीच बैठी जांचों के नतीजे कोई चमत्कारिक नहीं रहे। स्थानीय जांच कमेटी ने जैसे मानस ही बना रखा था कि ज्यादातर बच्चे गंभीर थे, बचाया नहीं जा सकता था। रैफरल अस्पताल है, गंभीर ही आते हैं। जयपुर की धमक से आई डाक्टरी कमेटी ने इलाज में लापरवाही नहीं मानी। व्यवस्थागत खामियां जरूर मानी जैसे अस्पताल में गंदगी, दरवाजे खिड़कियां टूटी होना, टोंटी टिपकना, ऑक्सीजन लाइन जैसे पर्याप्त संसाधनों का अभाव वगैरह-वगैरह।

सवाल यह कि वर्ष 1972 में बने इस अस्पताल में ये सब हालात क्या अचानक हो गए। इन 47 साल में 10 सरकारें शासन में रही। अभी 11 वीं सरकार है। पांच बार जनता पार्टी अथवा भाजपा और शेष बार कांग्रेस शासन में रही। गंदगी डिस्पोजल, टोंटी खिड़कियां तक ठीक नहीं करा पाए हम। वे लोग भी नहीं जो कोटा के विकास पुरुष होने का दम भरते हैं, इस दौरान सत्ता में आए। और, वैकासिक पत्रकारिता का दम भरने वाले मीडिया समूहों के लिए क्या ये बड़ा मुद्दा नहीं था? या उनके अभियान के परिणाम सकारात्मक आने की सुनिश्चितता नहीं थी। जांच कमेटियों में आने वाले उच्च स्तर के अफसरों का यात्रा भत्ता तक संभवत: इन खिड़कियोंं के काच, टोटी अथवा अन्य छोटी-मोटी जरूरतों से अधिक बन जाता है। स्पष्टत: यह मौतों का सिलसिला लोकतंत्र के इन स्तंभों की सामूहिक लापरवाही का दुष्परिणाम है। अब भी राजनीतिक व कार्यपालिकीय संतुलन के साथ चलना आम जन को स्पष्ट दिख रहा है। जिन दिवंगत बच्चों के नाम पर ये सब सुखियां बटोर रहे, उनके शोक संतृप्त परिजनों का हाल जानने एक दो मीडियाकर्मियों के अलावा कोई दिग्गज नहीं गया। ना ही औसतन मौतों के प्रति अभ्यस्त चिकित्सा प्रशासन को कोई अफसोस है।

एक्शन के नाम पर....

एक्शन के नाम पर किसी अधीक्षक को हटाना दिखाना और नए का पदभार समारोह मनाना कहां की नैतिकता? और, बाल कल्याण समिति के नाम पर कुर्सियां संभालने, इसी हैसियत से निरीक्षण करने जाते वक्त जूते पहन इमरजेंसी में पहुंचना संक्रमण की जांच में गंभीरता कही जाएगी?
और, लोकसभा अध्यक्ष के ट्वीट से जागने और हांफने जितना दौडऩे वाले मीडिया के लिए क्या कहें?
इतने हो-हल्ले के बाद सुकून की बात बस यही है कि एक करोड़ की अटकी हुई वित्तीय स्वीकृति मिल गई, 300 बैड के नए बच्चों के अस्पताल की जरूरत पर गंभीर विचार शुरू हुआ है।  मेडिकल कॉलेज के शिशुरोग विभागाध्यक्ष फिलहाल जेकेलोन में बैठने लग गए हैं। बाकी, जांचों का हश्र तो परंपरागत डाक्टरी जांच की तरह होना ही है।

ईश्वर सद्बुद्धि दें ...

ईश्वर जिम्मेदारों को सद्बुद्धि दें और जेकेलोन के ही बहाने सही, सत्तानीति से दूर सर्वदलीय सहमति से ऐसी कार्ययोजना बन जाए कि अस्पतालों में नवजात मौतों का सिलसिला थमे। ना ठंडी हवा उनका दम तोड़े और ना वार्मर जलाए। और, एक भी बच्चे की मौत पर चिकित्सा स्टाफ का हृदय सिसकियां भरने लगे ऐसा चमत्कार सिस्टम में हो जाए तो शायद इन बच्चों को अद्भुत श्रद्धांजलि होगी। आइये, शोकसंलिप्त चिंतन कर सभी कुछ संकल्प करें। #KotaTragedy #KotaKeDoshi #KotaChildDeath
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#DhitendraSharma
( dhitendra.sharma@gmail.com/
Youtube Channel; #SujlamSuflam)  

वीडियो देखने के लिए क्लिक करें....
https://www.facebook.com/116483723097579/videos/1089164691425281/

3 comments:

Unknown said...

दोष किसे दे मौतों पर
अस्पताल के मैनेजमेंट को
या फिर बधाई दे
तथाकथित राजनेताओ के मीडिया मैनेजमेंट को
जिन्होंने यंहा की व्यवस्थाएँ सुधारने के बजाय अस्पताल को राजनीति का अखाड़ा बनवा दिया।

आशाएं said...

Kota have two istambh only.(1)Bhai sahab BJP(2)Bhai sahab congres.Fourth istambh sold by......

??

आशाएं said...

Kota have two istambh only.(1)Bhai sahab BJP(2)Bhai sahab congres.Fourth istambh sold by......

??

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